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भग॑भक्तस्य ते व॒यमुद॑शेम॒ तवाव॑सा। मू॒र्धानं॑ रा॒य आ॒रभे॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhagabhaktasya te vayam ud aśema tavāvasā | mūrdhānaṁ rāya ārabhe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भग॑ऽभक्तस्य। ते॒। व॒यम्। उत्। अ॒शे॒म॒। तव॑। अव॑सा। मू॒र्धान॑म्। रा॒यः। आ॒ऽरभे॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:24» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:13» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी अगले मन्त्र में परमेश्वर ही का प्रकाश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! जिससे हम लोग (भगभक्तस्य) जो सब के सेवने योग्य पदार्थों का यथा योग्य विभाग करनेवाले (ते) आपकी कीर्त्ति को (उदशेम) अत्यन्त उन्नति के साथ व्याप्त हों कि उसमें (तव) आपकी (अवसा) रक्षणादि कृपादृष्टि से (रायः) अत्यन्त धन के (मूर्द्धानम्) उत्तम से उत्तम भाग को प्राप्त होकर (आरभे) आरम्भ करने योग्य व्यवहारों में नित्य प्रवृत्त हों अर्थात् उसकी प्राप्ति के लिये नित्य प्रयत्न कर सकें॥५॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अपने क्रिया कर्म से ईश्वर की आज्ञा में प्राप्त होते हैं, वही उससे रक्षा को सब प्रकार से प्राप्त और सब मनुष्यों में उत्तम ऐश्वर्यवाले होकर प्रशंसा को प्राप्त होते हैं, क्योंकि वही ईश्वर जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्यायव्यवस्था से विभाग कर फल देता है ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स एवार्थ उपदिश्यते।

अन्वय:

हे परात्मन् ! भगभक्तस्य ते तव कीर्त्तिं यतो वयमुदशेम, तस्मात्तवावसा रायो मूर्द्धानं प्राप्यारभ आरब्धव्ये व्यवहारे नित्यं प्रवर्त्तामहे॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भगभक्तस्य) भगाः सर्वैः सेवनीया भक्ता येन तस्य (ते) तव जगदीश्वरस्य (वयम्) ऐश्वर्य्यमिच्छुकाः (उत्) उत्कृष्टार्थे (अशेम) व्याप्नुयाम। वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति नियमाच्छपः स्थाने श्नुर्न। (तव) (अवसा) रक्षणेन (मूर्द्धानम्) उत्कृष्टभागम् (रायः) धनसमूहस्य (आरभे) आरब्धव्ये व्यवहारे। अत्र कृत्यार्थे तवैकेन्केन्यत्वनः (अष्टा०३.४.१४) अनेन ‘रभ’ धातोः केन् प्रत्ययः॥५॥
भावार्थभाषाः - येऽनुष्ठानेनेश्वराज्ञां व्याप्नुवन्ति त एवेश्वरात् सर्वतो रक्षणं प्राप्य सर्वेषां मनुष्याणां मध्य उत्तमैश्वर्य्या भूत्वा प्रशसां प्राप्नुवन्ति, कुतः? स एवेश्वरः स्वस्वकर्मानुसारेण जीवेभ्यः फलं विभज्य ददात्यतः॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे आपले कार्य करताना ईश्वराच्या आज्ञा पाळतात त्यांचे रक्षण तोच करतो. सर्व माणसांमध्ये तीच उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त करून प्रशंसेस पात्र ठरतात. कारण तोच ईश्वर जीवांना त्यांच्या कर्मानुसार न्यायव्यवस्थेप्रमाणे फळ देतो. ॥ ५ ॥